कौशांबी जिले की भरवारी चौकी एक बार फिर सवालों के घेरे में है। आधी रात को पुलिस दबिश का वीडियो सामने आया है, जिसमें चौकी इंचार्ज अपने सिपाहियों के साथ दरवेशपुर में रूपेंद्र शर्मा और मिथलेश शर्मा के घर में घुसते नजर आ रहे हैं।
रूपेंद्र शर्मा का कहना है कि ना कोई सूचना, ना सम्मान… सीधे दरवाज़ा तोड़ने जैसा बर्ताव कर दिया गया।
सबसे बड़ी चिंता घर की महिला का बयान है। उनका आरोप है कि बिना महिला पुलिसकर्मी के, दरोगा जी टॉर्च लेकर घर में घुसे और सोते हुए माहौल को अस्त-व्यस्त कर दिया। महिला कहती है मैं सो रही थी, अचानक दरोगा जी कमरे में टॉर्च मारते आए। मैं घबराकर उठी, असहज महसूस किया और अभी तक उस डर और शर्म से बाहर नहीं निकल पाई।
क्या दबिश के दौरान महिला पुलिस की मौजूदगी ज़रूरी नहीं है? कानून साफ कहता है कि महिलाओं से जुड़े मामलों में महिला कांस्टेबल का होना अनिवार्य है। फिर इस नियम को क्यों तोड़ा गया?
क्या आधी रात को किसी भी घर में घुसना सही प्रक्रिया है? जब गिरफ्तारी या दबिश के लिए सुबह का समय उपलब्ध होता है, तो देर रात अचानक घर में घुसने का क्या औचित्य है?
क्या पुलिस वारंट को नागरिकों की गरिमा कुचलने का हथियार बना रही है? वारंट का मतलब अधिकार है, मगर क्या यह अधिकार निजी ज़िंदगी में दखल और डर फैलाने का लाइसेंस भी है?
आम जनता की निजता की रक्षा कौन करेगा? जब घर की दीवारें और बेडरूम भी सुरक्षित नहीं रहे तो नागरिक अपनी सुरक्षा किससे उम्मीद करें?
पुलिस की जवाबदेही कहाँ है? क्या कोई उच्च अधिकारी इस दबिश की जांच करेगा या फिर यह मामला भी रूटीन कार्रवाई कहकर टाल दिया जाएगा?
स्थानीय लोग भी सवाल उठा रहे हैं कि कानून लागू करने वाली एजेंसी अगर नियम-कायदे तोड़कर ही काम करेगी तो जनता का भरोसा कैसे कायम रहेगा? भरवारी चौकी का यह मामला महज़ एक परिवार का नहीं, बल्कि उस बड़े सवाल का प्रतीक है कि क्या पुलिस के अधिकार नागरिकों के अधिकारों से ऊपर हो गए हैं?