सोनभद्र : फ्लोरोसिस के करण तीन -तीन पीढ़ियां हो चुकी है प्रभावित, फिर भी नहीं मिल पा रही राहत।

Bole India
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उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में पानी में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने के कारण फ्लोराइड गांव के लिए अभिशाप बन चुका है जहा फ्लोरोसिस नामक बीमारी से तीन-तीन पीढ़ियां अपाहिज हो चुकी फिर भी राहत के नाम पर अब तक किए गए तमाम सरकारी कोशिश और दावे असफल साबित हो रहे हैं। इन गांव में फ्लोराइड की मात्रा सामान्य से 10 से 12 गुना अधिक पाई जाती है यही वजह है कि यहां के लोगों का जीवन बाद से बदतर होता जा रहा है इसी का पड़ताल करने इण्डिया न्यूज कि टीम पहुंची , कोन ब्लॉक के कचनारवा न्याय पंचायत के शिकारी टोली गांव के रहने वाले 35 वर्षीय राजू उरांव बिल्कुल अपाहिज हो चुके हैं किसी तरह से घिसट-घिसट कर वह एक स्थान से दूसरे स्थान तक जा पाते हैं उनके पिता 55 वर्षीय नकू उरांव फ्लोरोसिस से प्रभवित होने के कारण पूरा शरीर उनका जकड़ गया है अब वह बिस्तर से भी नहीं उठ पाते हैं राजू उरांव का 8 वर्षीय दीपानशु बेटा भी डेंटल फ्लोरोसिस का शिकार हो चुका है राजू की माता 50 सिमित्री का भी हालत यही है उनके भी शरीर के जॉइंट में अजीब सा दर्द बना रहता है। राजू उरांव का कहना है कि उनकी इस स्थिति के बाद पत्नी बेटी के साथ छोड़कर चली गयी। पत्नी का कहना है कि जब तुम ना तो कुछ कमा सकते हो ना खिला सकते हो ऐसे में तुम्हारे पास क्यों रहे।

रोहिनवादामर गांव में फ्लोराइड की समस्या होने पर 50 वर्षीय शंभू उरांव अपने पूरे परिवार के साथ आकर शिकली टोली गांव में आकर बस गए क्योंकि शंभू उरांव की पत्नी 50 वर्षीय कलावती बिल्कुल विकलांग हो चुकी थी, सोचा था कि यहां आकर इस बीमारी से राहत मिलेगा लेकिन शिकारी टोला गांव के पानी में फ्लोराइड की मात्रा मानक से कई गुना अधिक है शंभू के पिता और उनके दोनों पुत्र निर्मल और राकेश भी फ्लोरोसिस दंश झेल रहे हैं शंभू की पत्नी कलावती का मौत 4 दिन पहले हो गई
म्योवरपुर ब्लॉक के कुसम्हा गांव के 30 वर्षीय अरविंद की कहानी भी शंभू उरांव और राजू उरांव की तरह ही है अरविंद के माता के शरीर में फ्लोराइड की मात्रा अधिक होने के कारण पूरा शरीर जकडता जा रहा है खुद अरविंद को भी डेंटल फ्लोरोसिस है और अब अरविंद के चार वर्षीय बेटी भी फ्लोरोसिस से प्रभावित है यानी जहरीली पानी से होने वाले रोग से तीन तीन पीढ़ियां प्रभावित हो चुकी है।

ऐसा नहीं है कि प्रशासन के द्वारा इस समस्या से निजात पाने के लिए प्रयास नहीं किया गया लगातार लोगों के बीच हड्डी से जुड़े रोगों की समस्या को सुनने के बाद गांव में जिला अधिकारी व स्वास्थ्य विभाग की टीम कई बार पहुंचे पानी का जांच कराया गया जो हैंडपंप फ्लोराइड की मात्रा अधिक थी उन्हें निकाल कर बाहर कर दिया गया जिले में स्थापित कंपनियों के सी एस आर फंड की मदद से छोटे-छोटे वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट लगाकर लोगों को पानी का सप्लाई दिया जाने लगा इस पानी के सप्लाई के वजह से लोगों को काफी राहत मिली लेकिन इस पर ध्यान न देने की वजह से धीरे-धीरे यह सारे प्लांट खराब होते चले गए और लोग फिर वही फ्लोराइड वाला पानी पीने के लिए मजबूर हो गए। प्रशासन के द्वारा लगातार यह दावा किया जा रहा है कि नमामि गंगे वह हर घर जल नल योजना के तहत ऐसे गांव में पानी पहुंचाया जा रहा है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है।

कचनारवा के ही शिकारी टोला में सुखदी के घर पहुंचे जिनके घर पर साल में तीन सदस्यों की मौत हो गई है मौत का कारण फ्लोराइड से प्रभावित होने के बाद हड्डियों का जकड़ जाना नसों का बना और उसे पैरालिसिस के साथ ही अन्य बीमारियां जिनकी वजह से परिजनों की असामयिक मृत्यु हो गई अब सुखारी उनके बेटे और नाती भी इसी से ग्रसित हैं।

वहीं इसी गांव की सुंदरी जिनके पति की मौत एएसएमसी होने के साथ ही अब सुनाई भी पूरी तरह से फ्लोराइड से प्रभावित हैं यह सीधा चल नहीं सकती हैं इनका पर फ्लोराइड की वजह से बिल्कुल टेढ़ा हो गया है इतना ही नहीं इनकी इनकी 25 साल की बेटी है जो बिल्कुल चल फिर नहीं पाती है और जमीन पर घिसताते हुए थोड़ा बहुत सड़क कर अपनी जगह छोड़ पाती है वही बचपन से ही फ्लोराइड के वजह से प्रभावित होने के कारण इसका मानसिक विकास भी पूरी तरह प्रभावित हो गया जिसकी वजह से ना तो यह बोल पाती है और ना ही कुछ समझ पाती है जब इसे कुछ खाने-पीने की आवश्यकता होती है तो खाना मांगना पानी मांगने के अलावा यह और कुछ भी नहीं बोल पाती है।

कचनारवा के ही रोहित से मिलिए इनकी उम्र 20 वर्ष है लेकिन उम्र और शरीर के हिसाब से इनका सर बहुत बड़ा है यह बातों को समझने और बोलने में इनको दिक्कत होती है यह तेजी से चल नहीं सकते तेजी से चलने में अचानक गिर जाते हैं हालांकि कुछ-कुछ बातों का थोड़ा बहुत जवाब देते हैं।

जब के ही गांव के जसबीर उरांव ने बताया कि जब पहली बार फ्लोराइड की समस्या की जानकारी हुई तो यहां प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की टीम पहुंची और उसे उसे हैंड पंप को उखाड़ दिया गया जिसमें फ्लोराइड की मात्रा औसत से अधिक पाया गया लेकिन पेय जल की व्यवस्था न होने के करण सभी लोग नदी नाले का पानी पीने लगे इस नदी नाले के पानी को पीने से फ्लोराइड की समस्या से तो राहत मिली लेकिन उल्टी दस्त बुखार व अन्य बीमारियों से लोग परेशान होने लगे। यही नहीं इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए लोग अपने पुराने घरों को छोड़कर दूसरी दूसरी जगह पर घर बनाकर रहने लगे कुछ दिनों तक तो राहत महसूस वाले की वहां भी धीरे-धीरे फ्लोराइड की मात्रा बड़ी और फिर से फ्लोरोसिस बीमारी से ग्रसित होने लगे।

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