नई दिल्ली. इनकम टैक्स की नजर सिर्फ आपकी कमाई पर नहीं, लेनदेन पर भी रहती है. दिल्ली के रहने वाले कुमार ने जैसे ही अपने बैंक खाते में 8 लाख रुपये जमा किए, कुछ ही दिन में उन्हें इनकम टैक्स का नोटिस आ गया.
विभाग ने इस रकम को सीधे उनके बिजनेस से हुई कमाई से जोड़ दिया और इनकम टैक्स की धारा 44AD के तहत उनसे टैक्स डिमांड भी कर दी. विभाग की इस कार्रवाई के खिलाफ कुमार ने इनकम टैक्स विभाग के आयुक्त के पास अपील की, जहां केस हार गए. फिर उन्होंने आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण, दिल्ली में अपील की तब जाकर केस जीता. इस पूरी भागदौड़ में 6 साल लग गए.
कुमार ने इस मामले में मुख्य रूप से चुनौती निचले टैक्स प्राधिकरण के फैसले के खिलाफ की थी. इस फैसले में कुमार की ओर से खाते में जमा की गई 8,68,799 रुपये की रकम को उनके बिजनेस से हुए अनुमानित मुनाफे के रूप में क्लासीफाई किया था और उस पर टैक्स वसूलने का नोटिस भेज दिया था. कुमार ने तर्क दिया कि यह जांच बेहद सीमित थी और सिर्फ उनके नकद जमा करने को ही आधार बनाकर टैक्स विभाग ने अपना नोटिस भेज दिया था. साल 2019 में शुरू हुए इस केस को कुमार ने 22 सितंरब, 2025 को अपीलीय न्यायाधिकरण में जीता.
क्या था पूरा मामला
इनकम टैक्स विभाग ने अपनी जांच धारा 143(2) के तहत नोटिस में परिभाषित किया गया था, जो सिर्फ बैंक खाते में नकद जमा की जांच तक सीमित था. बाद में कर आकलन अधिकारी ने सीमित दायरे में जांच करते हुए पूरी रकम को अनुमान के आधार पर कुमार के कारोबार से होने वाले मुनाफे में जोड़ दिया. इस पर कुमार ने कहा कि कर आकलन अधिकारी को सिर्फ इन पैसों के स्रोत की जांच करने का अधिकार था. इस पर टैक्स का आकलन करने के लिए सीआईटी से पूर्व अनुमति लेना जरूरी था. इसके लिए सीबीडीटी ने बाकायदा निर्देश भी दिया है.
कैसे जीता इनकम टैक्स का मुकदमा
कुमार ने अपना केस दिल्ली की अपीलीय न्यायाधिकरण की अदालत में जीता, जहां कोर्ट ने कहा कि आकलन अधिकारी और अपीलीय आयुक्त, दोनों ने ही अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर इस पर टैक्स की मांग की है. अपने फैसले में अपीलीय न्यायाधिकरण ने कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले पर भरोसा किया, जो अधिकारियों के जांच दायरे को सीमित करता है. आईटीएटी ने यह भी पाया कि अधिकारियों ने अपने दायरे से बाहर जाने का कोई कारण भी नहीं बताया. लिहाजा ट्रिब्यूनल ने इस पूरी जांच को ही अवैध करार दे दिया.
कुमार को टैक्स देना पड़ा या नहीं
अब जबकि ट्रिब्यूनल ने कुमार के खिलाफ आयकर विभाग की सभी जांच और कर आकलन को ही अवैध करार दे दिया तो सवाल ये उठता है कि क्या कुमार को टैक्स देना पड़ा या नहीं. आईटीएटी के फैसले के अनुसार, कुमार के खिलाफ इनकम टैक्स विभाग के लगाए गए आरोप और जांच सभी बेबुनियाद थे. अधिकारियों ने सभी जांच अपने दायरे से बाहर जाकर की थी, लिहाजा इस मामले में कुमार पर न तो कोई टैक्स देनदारी बनती है और न ही उन्हें इनकम टैक्स कानून के तहत कोई सजा दी गई.


