श्रीफल एवं चावल चढ़ाने से निसंतान दम्पति को होती है संतान की प्राप्ति

दीपक नौटियाल

उत्तरकाशी। उत्तरकाशी जनपद की सीमा से लगी जनपद टिहरी गढ़वाल के प्रताप नगर प्रखंड के पट्टी  ओण में स्थित ग्राम सभा देवल में स्थित प्राचीन मंदिर है। ओणेश्वर महादेव समूचे क्षेत्र में श्रद्धा, विश्वास, प्रगति और उन्नति का प्रतीक है। इस मंदिर को भगवान शिव स्वरुप पूजा जाता  है। पहाड़ों के बीच में उपस्थित यह मंदिर अपनी सुंदरता और मान्यता के लिए बहुत प्रसिद्ध है।

इस मंदिर में श्रीफल ही चढ़ाए जाते हैं। एक श्रीफल और चावल अपने ईष्ट को पूजने की परंपरा इस मंदिर में सालों से हैं। ओणेश्वर महादेव अवतरित भी होते हैं जो कि नागवंशी राजा , पवार वंश  व कई प्रमुख जाति के व्यक्ति हैं। फाल्गुन महाशिवरात्रि व श्रावण मास में हजारों भक्त महादेव के दर्शन करने यहां आते हैं। महाशिवरात्रि के दिन एक विशाल भव्य मेला भी लगता है। जिसमें दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार एक बार जब क्षेत्र के लोग अपने देवता के कुछ निशान को लेकर उनके निवास स्थान की ओर जा रहे थे तो निवास स्थान की तरफ जाते समय गांव के लोगो को जब थकान लगी तो वे एक कांटेदार पेड़ के नीचे बैठे। जिस पेड़ को भेकल कहा जाता है।

जैसे ही वे आराम करके खड़े उठे तो कुछ ऐसा हुआ। जिससे वे सभी लोग परेशान हो गए। जिस स्थान पर उन्होंने देवता का निशान रखा था। वह निशान उस स्थान से टस से मस भी नहीं हो रहा था। लोगों के भरसक प्रयास करने पर भी वह वहां से नहीं हिला। यहां सब देख कर कुछ लोगों अपने गांव की तरफ गए तथा वहां के लोग व बुजुर्गों से कहा कि हमारे देवता का निशान उस स्थान से भरसक प्रयास के बाद भी नहीं उठ रहा था। कहा जाता है कि जब यहां घटना हुई तो उसी रात्रि में उस गांव के बुजुर्ग के सपने में उनके देवता है। जोकि जटाधारी बालक शिव रूप में बुजुर्ग के सपने में आए तथा उन्होंने बुजुर्ग से कहा कि अब मेरा स्थान उसी कांटेदार पेड़ के नीचे हैं जहां पर गांव वालों ने मुझे आराम करते समय रखा था। इसीलिए आप मेरा मंदिर उसी स्थान पर बनाएं क्योंकि मैं अब से वही वास करूंगा।

सुबह उठते ही बुजुर्ग ने गांव वालों से स्वप्न की बात बताई। तब सभी गांव वासियों ने उस स्थान पर एक मंदिर की स्थापना की। वहां पर एक प्राकृतिक रूप से विशाल लिंग स्थापित था। जिसके साथ मंदिर की स्थापना की गई जिसे हम आज ओणेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जानते हैं।

  ओणेश्वर महादेव मंदिर के पश्वा (जिन पर देवता अवतरित होते हैं) उनमें मुख्य रूप से ओनाल गांव के नागवंशी राणा एवं खोलगढ़ के पंवार वंशज व अन्य कई प्रमुख जाति पर अवतरित होते हैं तथा देवता की पूजा के लिए ग्राम सिलवाल गांव के भट्ट जाति के ब्राह्मण एवं ग्राम जाखणी, पट्टी भदूरा के सेमवाल जाति के ब्राह्मण हैं।  किन्तु पूजा के लिए सिलवाल गांव के मुण्डयाली वंशज भट्ट ब्राह्मण और ग्राम जाखणी के हरकू पण्डित के वंशज की खास जिम्मेदारी मन्दिर पूजा के लिए रहती है। ओणेश्वर महादेव की उत्पत्ति कुज्जू सौड़ ओनालगांव के ऊपर मानी जाती है। ओणेश्वर महादेव मंदिर के बारे में यह मान्यता है कि इस मंदिर में आकर पूजा करके निसंतान स्त्री को संतान प्राप्ति का सुख प्राप्त होता है।  

  लोगों की भावना के अनुरूप आज वहीं स्थान एक भव्य मन्दिर का रूप ले चुका है।
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