जानिए तालिबान ने मोहम्मद हसन अखुंद को क्यों बनाया प्रधानमंत्री?

अफगानिस्तान में तालिबान ने नई कार्यवाहक सरकार की घोषणा कर दी है, इस सरकार के मुखिया मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद (Mullah Mohammad Hasan Akhund) होंगे। अखुंद को अफगानिस्तान का अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया है, मगर सवाल ये है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि बरादर को छोड़कर मुल्ला अखुंद को तख्त पर बैठा दिया गया। जबकि पहले चर्चा थी कि अब्दुल गनी बरादर (Abdul Ghani Baradar) तालिबान के प्रधानमंत्री पद पर काबिज होंगे लेकिन अब वो दूसरे नंबर पर हैं। क्या मुल्ला मोहम्मद हसन अखुंद, बरादर और हक्कानी नेटवर्क के समर्थकों के बीच एक समझौता उम्मीदवार हैं। या तालिबान दुनिया को कोई संकेत देना चाहता है?

क्या किसी समझौत के तहत प्रधानमंत्री बने अखुंद?

अखुंद की नियुक्ति के पीछे सत्ता संघर्ष नजर आ रहा है, मुल्ला अब्दुल गनी बरादर, जिन्होंने उमर की मौत के बाद परोक्ष तौर पर नेता का पद संभालने से पहले तालिबान के शुरुआती सालों में उमर के बाद दूसरे नंबर का पद संभाला था, उन्हें अफगानिस्तान मामले के कई विशेषज्ञ देश के संभावित प्रमुख के तौर पर देख रहे थे। लेकिन बरादर और शक्तिशाली हक्कानी नेटवर्क के बीच राजनीतिक तनाव है, हक्कानी नेटवर्क वो इस्लामी संगठन है जो हाल के सालों में तालिबान की वास्तविक राजनयिक शाखा बन गया है और दूसरे स्थानीय समूहों के बीच समर्थन हासिल करने में सफल रहा है। हक्कानी तालिबान के सबसे उग्रवादी गुटों में से है, और महिलाओं के अधिकारों, अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ काम करने और पूर्व सरकार के सदस्यों के लिए माफी जैसे मुद्दों पर बरादर की हालिया सुलह की भाषा हक्कानी नेटवर्क की विचारधारा के विपरीत है। अखुंद, बरादर और हक्कानी नेटवर्क के समर्थकों के बीच एक समझौता उम्मीदवार प्रतीत होते हैं।

अखुंद की नियुक्ति के मायने क्या हैं?

अखुंद एक रूढ़िवादी, धार्मिक नेता हैं, जिनकी मान्यताओं में महिलाओं पर प्रतिबंध और नैतिक और धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिक अधिकारों से वंचित करना शामिल है। 1990 के दशक में तालिबान के अपनाए गए उनके आदेशों में महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध लगाना, लैंगिक अलगाव को लागू करना और सख्त धार्मिक परिधान को अपनाना शामिल था। ये सब इस बात का संकेत देते हैं कि आने वाला समय कैसा होगा? तालिबान की नरम भाषा के बावजूद, ऐसी संभावना है कि कुछ नियमों की वापसी दिख सकती है जो तालिबान के पहले के शासन के दौरान मौजूद थे जिसमें महिलाओं की शिक्षा पर प्रतिबंध शामिल था।
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