महामारी के प्रकोप की दूसरी लहर में आयुष चिकित्सा पद्धतियों ने लोगों की इम्युनिटी बढ़ाने तथा उन्हें संक्रमण से मुक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई: राष्ट्रपति

     भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द जी ने आज जनपद गोरखपुर में विकास खण्ड भटहट के पिपरी गांव में महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय का भूमि पूजन एवं शिलान्यास किया। इस अवसर पर आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति जी ने कहा कि महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय के शिलान्यास कार्यक्रम के दौरान भगवान इंद्रदेव भी अपना आशीर्वाद देने के लिए हमारे बीच पधारे हैं। उन्होंने कहा कि शास्त्रों में मान्यता है कि शुभ कार्य संपन्न होने के दौरान यदि आकाश से पानी की बूंदे गिरने लगें, तो कहा जाता है कि कार्य शुभ से अत्युत्तम शुभम होगया।

     राष्ट्रपति जी ने योग के माध्यम से सामाजिक जागरण की अलख जगाने वाले गुरु गोरखनाथ के कथन का उल्लेख करते हुये कहा कि ’यद् सुखम् तद् स्वर्गम्, यद् दुःखम् तद् नरकम्’ अर्थात जो सुख है वही स्वर्ग है, और जो दुख है, वही नरक है। उन्होंने कहा कि वैदिक काल से ही आरोग्य होने पर विशेष बल दिया जाता है। वेद, पुराण, उपनिषद और प्राचीन ग्रंथों में भी आरोग्य की महत्ता के बारे में वर्णन है। उन्होंने कहा कि ‘शरीरमाद्यं खलुु धर्म साधनम्’ अर्थात शरीर ही समस्त कर्तव्यों को पूरा करने का प्रथम साधन है, इसलिए शरीर को स्वस्थ रखना बेहद आवश्यक है। शरीर निरोगी एवं स्वस्थ रहे, इसी उद्देश्य को सफल बनाने के लिए आयुष विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही है। राष्ट्रपति जी ने कहा कि शिलान्यास कार्य करते हुए बेहद प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।

     राष्ट्रपति जी ने कहा कि शरीर को स्वस्थ रखने के लिए भारत में अनेक प्रकार की चिकित्सा पद्धतियां प्रचलित रही हैं। भारत सरकार ने आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी चिकित्सा पद्धतियों, जिन्हें सामूहिक रूप से ‘आयुष’ के नाम से जाना जाता है, के विकास के लिए निरंतर प्रयास किए हैं। इन चिकित्सा पद्धतियों की व्यवस्थित शिक्षा और अनुसंधान के लिए भारत सरकार ने, वर्ष 2014 में‘ आयुष’ मंत्रालय का गठन किया था। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश सरकार ने भी वर्ष 2017 में आयुष विभाग की स्थापना की थी और अब, राष्ट्रीय स्तर की सुविधाओं से युक्त आयुष विश्वविद्यालय स्थापित किये जाने का सराहनीय निर्णय लिया है। मुझे विश्वास है कि इस विश्वविद्यालय से सम्बद्ध होकर प्रदेश के आयुष चिकित्सा संस्थान अपने-अपने क्षेत्र में बेहतर कार्य कर सकेंगे।    राष्ट्रपति जी ने कहा कि मुझे बताया गया है कि पारम्परिक एवं प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों की विश्वसनीयता एवं स्वीकार्यता को अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप स्थापित किये जाने और जन-स्वास्थ्य में योग की उपयोगिता को देखते हुए, एक शोध संस्थान की स्थापना भी इस विश्वविद्यालय में की जाएगी। उन्होंने कहा कि भारत में प्राचीन काल से ही अनेक चिकित्सा पद्धतियां प्रचलित रही हैं। देश में सिद्ध चिकित्सा पद्धति का विकास नाथों एवं सिद्धों द्वारा किया गया। आज के समय में यह पद्धति, दक्षिण भारत में अधिक लोकप्रिय है। ऐसा विश्वास है कि खनिजों और धातुओं को औषधि के रूप में तैयार करके, आपातकालीन दवाइयों के रूप में इनके प्रयोग के प्रवर्तकों में बाबा गोरखनाथ प्रमुख रहे हैं। इसलिए, उत्तर प्रदेश में स्थापित किए जा रहे आयुष विश्वविद्यालय का नाम महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय रखा जाना सर्वथा उचित है।राष्ट्रपति जी ने कहा कि महायोगी गुरु गोरखनाथ जी का जीवन उदात्त था। उन्होंने सदाचरण, ईमानदारी, कथनी व करनी के मेल और बाह्य आडंबरों से मुक्ति की शिक्षा दी। योग को उन्होंने ‘दया दान का मूल’ कहा। उनके चरित्र, व्यक्तित्व एवं योग सिद्धि से सन्त कबीर इतने प्रभावित थे कि उन्होंने गुरु गोरखनाथ को ‘कलिकाल में अमर’ कहकर उनकी प्रशस्ति की। गोस्वामी तुलसीदास ने भी योग के क्षेत्र में गुरु गोरखनाथ की प्रतिष्ठा स्वीकार करते हुए कहा कि ‘गोरख जगायो जोग’ अर्थात् गुरु गोरखनाथ ने जन-साधारण में योग का अभूतपूर्व प्रसार किया।राष्ट्रपति जी ने कहा कि भारत में योग मार्ग उतना ही प्राचीन है, जितनी प्राचीन भारतीय संस्कृति है। योग को प्रतिष्ठित करने वाले गुरु गोरखनाथ निश्चय ही अत्यन्त महिमामय, अलौकिक प्रतिभा सम्पन्न, युगदृष्टा महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने समस्त भारतीय तत्व चिन्तन को आत्मसात करके साधना के एक अत्यन्त निर्मल मार्ग का प्रवर्तन किया। इसीलिए वे कहते थे ‘योगशास्त्रम् पठेत् नित्यं किम् अन्यैः शास्त्र-विस्तरैः’ अर्थात् नित्य प्रति योगशास्त्र का अध्ययन करना ही पर्याप्त है, अन्य शास्त्र पढ़ने की आवश्यकता ही क्या है। भारतवर्ष, विविधताओं में एकता का उत्तम उदाहरण है। जो कुछ भी लोकोपयोगी है, कल्याणकारी है, सहज उपलब्ध और सुगम है, उसे अपनाने में भारतवासी संकोच नहीं करते।देश में विभिन्न प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों का प्रचलन भी हमारी इसी सोच का परिणाम है। योग, आयुर्वेद और सिद्ध चिकित्सा, विश्व को भारत की देन है। भगवान धन्वंतरि को जहां आयुर्वेद का जनक माना जाता है, वहीं ऋषि अगस्त्य को सिद्ध चिकित्सा के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति भी अनेक क्षेत्रों में खूब लोकप्रिय है। जिस तरह चरक और सुश्रुत को औषधि-शास्त्र एवं शल्य-चिकित्सा का प्रवर्तक माना जाता है, उसी तरह से यूनानी चिकित्सा पद्धति के प्रणेता हिप्पोक्रेटीस को पश्चिमी दुनिया में चिकित्सा शास्त्र का जनक कहा जाता है।
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