पिता और पुत्र साहित्य को समर्पित

लखनऊ निवासी त्रिवेणी और ऋषभ वर्तमान में साहित्य सृजन को समर्पित पिता और पुत्र युग्म के सजीव उदाहरण हैं। पिता त्रिवेणी प्रसाद दूबे (उपनाम ‘मनीष’) भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं। प्रयागराज में जन्मे, वे अपने बाल्यकाल से ही निरंतर गद्य एवं पद्य सृजन में रत हैं। उनकी प्रथम कृति ‘अनमोल धरोहर’ का लोकार्पण उत्तर प्रदेश के तत्कालीन महामहिम श्री विष्णुकांत शास्त्री ने वर्ष २००१ में किया था। अब तक उनके दस हिंदी गद्य संग्रह, नौ हिंदी पद्य संग्रह, चार अंग्रेजी गद्य संग्रह और दो अंग्रेजी काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनको अब तक सौ से भी अधिक साहित्यिक सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। उनकी कहानी संग्रह ‘यथार्थ’ को वर्ष २००८ में राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान का अमृत लाल नागर सम्मान प्राप्त हुआ। वर्ष २०१५ में उनके दोहा संग्रह ‘मनीष सतसई’ को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का ‘कबीर पुरस्कार’ प्राप्त हुआ। वर्ष २०१८ में विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ द्वारा उनकी सुदीर्घ हिंदी सेवा हेतु उन्हें ‘विद्यासागर’ से विभूषित किया गया। त्रिवेणी जी अपने गीतों, दोहों, कुण्डलियों, छंदों, बालगीतों, ग़ज़लों, निबंधों, कहानियों, यात्रावृत्तांतों और संस्मरणों के कारण साहित्य जगत में चर्चित हैं। उनका हिंदी गीत संग्रह ‘कवि उर नित उर्वर होता है’, कहानी संग्रह ‘खड़ाऊँ’ और निबंध संग्रह ‘गद्य प्रवाह’ प्रकाशाधीन हैं। मनीष जी काव्य गोष्ठियों में भी भाग लेते हैं। उनकी रचनाएँ रेडियो और दूरदर्शन पर भी प्रसारित हो चुकी हैं। इनके द्वारा लिखे गये चार एकांकी नाटकों का मंचन भी हो चुका है। मनीष जी को गायन में भी विशेष रुचि है। वे अपनी रचनाओं को गाकर प्रस्तुत करने के आदी हैं। प्रत्येक सप्ताह एक नया छंद, एक नया गीत और किसी विशिष्ट विषय पर एक नया लेख लिखना, उनकी मनोवृत्ति एवं आचार का अभिन्न अंग है।

त्रिवेणी जी की अद्यतन प्रकाशित कृति, ‘त्रिवेणी हिंदी दोहा सहस्र’, एक हजार हिंदी दोहों का अनूठा संग्रह है। यह संग्रह दोहों के भावानुसार, कुल अट्ठावन खंडों में वर्गीकृत है। ‘वंदन खंड’ से प्रारंभ होते हुए इसका समापन ‘रंग खंड’ से होता है। इन दोहों का अंतिम स्वरूप इनकी गत पाँच वर्षों की सृजन साधना का फल है।

त्रिवेणी जी के कनिष्ठ पुत्र, ऋषभ, एक ऐसे नवयुवक रचनाकार हैं जो मात्र चौबीस वर्ष की आयु में अपनी कृतियों द्वारा अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुके है। उनकी अब तक कुल छः पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी पहली पुस्तक ‘द मैंगोमैन’ वर्ष २०१६ में प्रकाशित हुई थी। वह एक सामाजिक एवं राजनीतिक व्यंग्य के रूप में है। उनके अद्यतन प्रकाशित उपन्यास ‘क्राइकास- द वर्टिकल होराइजन’ और ‘देव’ वर्तमान में वैश्विक चर्चा में हैं। ‘क्राइकास’ एक वैज्ञानिक-साहित्य उपन्यास है, जिसका अद्यतन संस्करण वैश्विक प्रकाशन संस्था ‘लीडस्टार्ट’ द्वारा प्रकाशित किया गया है। उनका उपन्यास ‘देव’ कालजयी महाकाव्य ‘रामायण’ कथानक पर आधारित नवीन दृष्टिकोण से सृजित की गयी कृति है। इसे अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन संस्था ‘यूकीयोटो’ ने प्रकाशित किया है। ऋषभ ने साहित्य की दुनिया में प्रवेश हेतु इच्छुक लेखकों व कवियों के लिए एक निशुल्क मंच- ‘द वायसेस आफ साइलेंस’ का भी पहल किया है। इसके माध्यम से वे आकांक्षी लेखकों का मार्गदर्शन करते हैं। ऋषभ जी को अनेक साहित्य सम्मान भी मिल चुके हैं। ये एक कुशल वक्ता भी हैं। इनके तीन शोध पत्र वैश्विक शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। वे गद्य के अलावा कविताएँ भी लिखते हैं। उनका सृजन दस वर्ष की आयु से ही प्रारंभ हो गया था। वर्तमान में वे अपने तीन नये उपन्यासों पर कार्य कर रहे हैं।

पिता त्रिवेणी और पुत्र ऋषभ में प्रत्येक दिवस में कम से कम एक बार किसी साहित्यिक विषय पर विचारों का आदान-प्रदान अवश्य होता है। दोनों का यह मत है कि ऐसी चर्चाओं से मानसिक विकास के साथ ह्रदय की उर्वरता उन्नत होती रहती है।
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