गोरखपुर विवि के कुलपति पर मनमानी करने और शिक्षकों को डराने का आरोप, AIFUCTO ने राज्यपाल को लिखी लेटर
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लखनऊ जनज्वार। उत्तर प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में व्याप्त कुव्यवस्था और कुलपतियों पर मनमानी का आरोप लगाते हुए राज्य की कुलाधिपति और राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को एक पत्र लिखा गया है। यह चिट्ठी ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ यूनिवर्सिटी एंड कॉलेज टीचर्स ऑर्गनाइजेशन (AIFUCTO) के यूपी-उत्तराखंड के जोनल सेक्रेटरी डॉ राजेश चन्द्र मिश्र ने लिखा है। जिसमें कुलपति की नियुक्ति में नियमों की अनदेखी, गोरखपुर कुलपति के मनमाने रवैये, विश्वविद्यालयों में कार्यपरिषद के चुनाव नहीं होने को लेकर सवाल उठाये गये हैं।
विश्वविद्यालयों में हो रही मनमानी
पत्र के जरिये विभिन्न विश्वविद्यालयों में व्याप्त कुव्यवस्था की ओर राज्यपाल का ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश की। पत्र में कहा गया है कि देखा जा रहा है कि प्रदेश के अधिकांश कुलपति, कुलसचिव नियम के अनुसार नहीं बल्कि एक कंपनी के सीईओ की तरह विश्वविद्यालय का संचालन कर रहे हैं जो विश्वविद्यालय की स्वायत्तता और अकादमिक स्वतंत्रता के मूल भावना के खिलाफ है।
पत्र के जरिये राज्य में कुलपति के चयन की प्रक्रिया पर सवाल उठाये गये है। कुलपति के चयन में यूजीसी के नियमों की अनदेखी की बात कही गयी है। साथ ही कहा गया है कि विश्वविद्यालय अधिनियम के अनुसार, विश्वविद्यालयों की कार्यपरिषद में 4 निर्वाचित सदस्य होते हैं। लेकिन राज्य में लखनऊ विश्वविद्यालय सहित कई विश्वविद्यालय ऐसे हैं जहां पर कई वर्षों से इन सदस्यों के चुनाव की प्रक्रिया नहीं की गई। ये एक सोची समझी साजिश है। कुलपति नियम-कानून से विश्वविद्यालय को नहीं चला रहे, बल्कि अपनी मनमानी थोप रहे हैं।
पाठ्यक्रम को शैक्षणिक समितियों के समक्ष प्रस्तुत किए बिना ही धारा 13.6 का दुरुपयोग कर के कुलपति पास कर देते हैं। जिसका उन्हें अधिकार ही नहीं है। पत्र में कहां गया कि यदि ऐसे ही चलता रहा तो विश्वविद्यालय नामक संस्था समाप्त हो जाएगी। और यह कुव्यवस्था तभी समाप्त हो सकती है जब कुलपति चयन की प्रक्रिया पारदर्शी हो। साथ ही यूजीसी की योग्यता को लागू किया जाए।
भय के माहौल में शिक्षक
पत्र में दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर यूनिवर्सिटी के वीसी प्रोफेसर राजेश सिंह पर शिक्षकों को डराने का आरोप लगाया गया है। नौ महीने पहले ही पदभार ग्रहण करने वाले गोरखपुर के कुलपति प्रोफेसर राजेश सिंह पर छोटे से कार्यकाल में दर्जनों शिक्षकों एवं कर्मचारियों को अनुशासनहीनता और विश्वविद्यालय की गरिमा और छवि खराब करने का नोटिस थमा दिये जाने की बात कही गयी है। साथ ही यूनिवर्सिटी में भय का माहौल होने की बात कही है। शिक्षकों का पक्ष सुने बगैर नोटिस दिये जाने की बात सामने आ रही है। साथ ही भय के माहौल में शिक्षण कार्य प्रभावित होने की बात कही गयी है। यूनिवर्सिटी अधिनियम के अनुसार, हर साल स्टैक होल्डर के साथ एक मीटिंग होनी चाहिए। लेकिन कई विश्वविद्यालयों में ऐसी बैठक नहीं हो रही है। इस बैठक में शिक्षक, छात्र, शामिल होते हैं। विधायक, सांसद भी इसके सदस्य होते हैं, लेकिन इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। कुलपतियों की मनमानी को विश्वविद्यालयों की स्वायत्ता पर खतरा बताते हुए राज्यपाल से उचित ध्यान देने का निवेदन किया गया है।
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